यत्र नार्यस्तु  पूज्यते------!


मुनि तरूण सागर ने नारी के तीन रूपों के बारे में कहा है लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा। नारी परिवार को संपन्न बनाने के लिए लक्ष्मी का रूप धारण करें, संतान को शिक्षित बनाने के लिए सरस्वती बन कर दिखाए तथा सामाजिक बुराईयों को ध्वस्त करने के लिए सिंह पर आरूढ़ दुर्गा की भूमिका निभाये। यही उसका धर्म है और यही कर्त्तव्य है। प्रत्येक नारी ऐसा करने का प्रयास भी करती है तभी तो कहा गया है, ''यत्र नार्यस्तु  पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।'' जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है। और यही कारण रहा है कि बड़े-बड़े यज्ञ भी पुरूष तभी कर सकता था जब उसकी अर्द्धांगनी संग में हो। जब भगवान राम ने यज्ञ किया तो पत्नि सीता को बाहर कर देने के कारण उन्हें उनकी सोने की मूर्ति बनानी पड़ी तभी यज्ञ संभव हो सका। किन्तु आज जब भी अपशब्दों का प्रयोग किया जाता है तो स्त्री सूचक शब्दों से ही किया जाता है, उसमें भी मां, बेटी और बहिन को शामिल किया जाता है, पत्नि को नहीं। ये भी देखा गया है कि पिता कभी कभार अपने 4-5 वर्ष के बेटे से जब वह स्कूल से आता है तो पूछ लेता है कि तुमने कोई गर्ल फ्रेन्उ बनायी या नहीं ? अबोध बच्चा इस भाषा को नहीं समझने पर भी शरीर में एक सिहरन सी महसूस करता है जो समय के साथ बढ़ जाती है, लेकिन बेटी से कभी नहीं पूछता कि तुमने बॉय फ्रेन्ड बनाया कि नहीं। पहले मां-बाप बच्चे को शुरू से ही संस्कार देते थे कि साथ रहने वाली गांव की लड़कियां या लड़के भाई-बहिन हैं। कहीं भी किसी पर चोट नहीं हो सकती थी किन्तु अब पड़ोसी और परिजनों से भी बच्चे बचे रहें, ये जरूरी नहीं। किन्तु अपराध की शुरूआत होती है नारी  संबंधी अपशब्दों से जिन्हे बच्चे भी सुनते हैं। शिक्षित अशिक्षित छोटे-बड़े नौकरी वाले व्यवसाय करने वाले, ड्राईवर, क्लीनर, मैकेनिक, बड़ी शिददत के साथ इन शब्दों का उपयोग करते हैं। अगर हम समझते हैं कि आधी आबादी की हम गरिमा को संवारना चाहते हैं तो शुरूआत इन अपशब्दों पर रोक लगाकर की जा सकती है। रेप आदि जो अत्याचार होते हैं वाणी पर लगाम लगाकर भी इन पर नियंत्रण किया जा सकता है। यही से शुरूआत होगी नई पीढ़ी में अच्छे संस्कार पैदा करने की। वास्तव में परिवार ही प्रारम्भिक पाठशाला होती है।


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