पेरिस से ८० मील दूर एक देहात में जन्मे थे पेन्थिस । उनका पारिवारिक धंधा भेड़ पालना और ऊन कातना था तनिक बड़े होते ही पेन्थिस को भी उसी धंधे में लगना पड़ा | पढ़ने का उनका मन था, पर साधन न थे, वे भेड़ चराते हुए ही अपने आप पढ़ने का प्रयत्न करते । एक दिन उनके मामा आये और इस अभिरुचि को देखकर उन्हें पढ़ाने के लिए साथ ले गये ।
वे पढ़े, छात्रवृत्ति पायी । उच्चशिक्षा संपन्न की और एक हजार की नौकरी पर लग गये । विवाह प्रस्ताव आने लगे । उसने स्पष्ट इनकार कर दिया और कहा-व्यर्थ का जंजाल सिर पर लादने की अपेक्षा मैं अपने श्रम और ज्ञान का उपयोग अपने जैसे निर्धन विद्यार्थियों के लिए करूँगा ।
उसने निर्धन छात्रों के लिए एक प्राइवेट विद्यालय की स्थापना की १०० में अपना खर्च चलाते और ९०० रुपये मासिक उस विद्यालय को देते। छात्रों की प्रगति और विद्यालय की व्यवस्था देखकर अनेक लोग देखने आये और अत्यधिक प्रभावित हुए | कुछ संपन्न लोगों ने अच्छी सहायता दी । पेन्थिस ने नौकरी छोड दी और उसी विद्यालय को सँभालने लगे । आरंभ में केवल २० छात्र थे, पर अब उस विद्यालय में २००० निर्धन छात्र पढ़ते हैं।
-अखंड ज्योति से साभार