तेरी निगाह से ऐसी शराब पी मैंने
फिर न होश का दावा किया कभी मैंने।
ये वह और होंगे जिन्हें मौत आई होगी
निगाहें यार से पायी हैं जिन्दगी मैंने।
ऐ गमे-ज़िन्दगी कुछ तो दे मश्वरा
इक तरफ उसका घर इक तरफ मैकदा
मैं कहां जाऊं होता नहीं फैसला
इक तरफ उसका घर इक तरफ मैकदा।
इक तरफ बाम पर कोई गुलफाम है ।
इक तरफ महफ़िले वादा व जाम है
दिल का दोनों से कुछ न कुछ है वास्ता।
इक तरफ उसका घर इक तरफ मैक़दा
उसके दर से उठा तो किधर जाऊंगा
मैक़दा छोड़ दूंगा तो मर जाऊंगा।
सख्त मुश्किल में हूं क्या करूं ऐ खुदा।
इक तरफ उसका घर इक तरफ मैक़दा
इस ताल्लुक को मैं कैसे तोड़ दूं जफ़र
किसको अपनाऊं मैं किसको छोड़ दूं जफ़र।
मेरा दोनों से रिश्ता है नज़दीक का.
इक तरफ उसका घर इक तरफ मैक़दा
ऐ गमे ज़िन्दगी कुछ तो दे मश्वरा
इक तरफ उसका घर इक तरफ मैक़दा।।
-जफ़र गोरखपुरी