डायबिटीज होने पर आंखों की तंदुरुस्ती पर ध्यान देना निहायत जरूरी है। अगर ब्लड शुगर घटती-बढ़ती रहे तो आंखें भी मुश्किलों में घिर जाती हैं। कुदरती लेंस में परिवर्तन आने से चश्मे का नंबर बदल सकता है। कम उम्र में मोतियाबिंद उतर सकता है। आंख के पर्दे में रेटिनोपैथी हो जाए या नेत्रगोलक का दाब बढ़ने से काला मोतिया हो जाए तो दृष्टि जा सकती है। समझदारी इसी में है कि ब्लड शुगर पर नियंत्रण रखें और आंखों की समय-समय पर ठीक से जांच कराते रहें। जांच के दस्तावेजों की फाइल बना लें और पूरा रिकार्ड सुरक्षित रखें। इसकी आगे भी जरूरत पड़ सकती है।
नंबर बार-बार बदले तो सतर्क हों : ब्लड शुगर में बार-बार चश्मे का नंबर बदलता है। ऐसे में चश्मा बदलने की बजाय जरूरत ब्लड शुगर पर काबू पाने की है। ब्लड शुगर नियंत्रण में आने के 4-6 हफ्ते बाद ही नया नंबर लें। वरना नंबर फिर बदल सकता है।
आंखों के सामने काले धब्बे इधर-उधर भागते दिखें या नजर धुंधली हो जाए, तो नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लें। पर्दे में आया रेटिनोपैथी दोष दवाओं से दूर नहीं किया जा सकता, पर लेजर फोटोकोएगुलेशन से सुधार संभव है। विट्रियस में यदि खून उतर आए, तो 6 महीने में यह अपने से साफ हो सकता है। यदि यह साफ न हो, तो विट्रेक्टमी ऑपरेशन किया जाता है। इससे दृष्टि वापस लौट आती है। । काला मोतिया और डायबिटीज : दूसरे लोगों की तुलना में डायबिटीज में काला मोतिया (ग्लूकोमा) की दर आठ गुना है। काला मोतिया होने पर धीरे-धीरे आंख अंधियारी हो जाती है।
नियमित नेत्र जांच कराना ही इस खतरे से बचे रहने की सबसे बढ़िया इंशोरेंस है। शुरू में पता चल जाने पर दाब दवाओं और लेजर सर्जरी की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है।