पृथ्वी की आयु के मामले में वैज्ञानिकों के दो धड़े, परंपरावादी और संरचनावादियों के विचार एक दूसरे से भिन्न हैं। दोनों के विचारों के बीच प्रमुख अंतर पृथ्वी के अस्तित्व में आने के बारे में धर्म की भूमिका का है। एक ओर परंपरावादी वैज्ञानिक पृथ्वी की आयु के बारे में आकलन में कार्बन डेटिंग, एवोल्यूशन, रेडियोमेट्रिक डेटिंग और महाविस्फोट थ्योरी के पक्षधर हैं। इस गुट का मानना है कि पृथ्वी की आयु करीब 4.5 अरब वर्ष है।
इसके विपरीत संरचनावादी समूह है, जिसमें अधिकांशतः धर्म का नजरिया मानने वाले लोग हैं। इनमें कुछ वैज्ञानिक भी हैं। धर्म का नजरिया मुख्यतः जूदियो-ईसाई वर्ग मानता है। अधिकांश संरचनावादियों का मानना है कि पृथ्वी की आयु चार हजार वर्ष से दस हजार वर्ष के बीच है। यह समूह ओल्ड टेस्टामेंट के जीनिसिस के आधार पर पृथ्वी की आयु का आकलन करता है। ।
संरचनावादी पृथ्वी की आयु संबंधी वैज्ञानिक नजरिए में काफी गलतियां देखते हैं। उनका कहना है कि कार्बन डेटिंग त्रुटिपूर्ण है। परंपरावादी वैज्ञानिकों का कहना है कि कार्बन डेटिंग पत्थरों, चट्टानों और जीवाश्मों की आयु मापने का केवल एक तरीका ही है। पृथ्वी की आयु का पता लगाने के लिए कई तरह के रेडियोमेट्रिक तरीकों को भी काम में लाया जाता है। इस तरीके से चट्टानों, खनिजों और अन्य तत्वों में मौजूद रेडियोधर्मी आइसोटोप्स का पता लगाया जाता है। इसी तरह वैज्ञानिक पोटाशियम, सीसा, यूरेनियम के साथ-साथ कार्बन जैसे तत्वों की आयु का भी पता लगाते हैं।
इसके विपरीत अपने मत की पैरवी के लिए संरचनावादी वैज्ञानिकों का दावा है कि बाइबिल के प्रमाणों के साथ-साथ वैज्ञानिक नजरिया भी जरूरी है। कुछ संरचनावादियों का कहना है कि चाँद पर मौजूद मिट्टी की भी जांच होनी चाहिए। वह कहते हैं कि वातावरण में हीलियम की मौजूदगी भी इस ओर इशारा करती है कि पृथ्वी की आयु बहुत कम है। यदि पृथ्वी की आयु अधिक होती तो हीलियम मौजूदा मात्रा से कहीं अधिक होती। वह रेडियोमेट्रिक डेटिंग विधि की वैधता पर भी उंगली उठाते हैं।