"पथरी" और उसके "दर्द" से कैसे बचें!


जिन लोगों ने अन्य दर्द सहे हैं और उन्ही में से किसी को पथरी का दर्द भी हुआ है तो वे पथरी के दर्द के बारे में शायद यही कहेंगे बाप रे बाप पथरी का दर्द जब उठता है तो सामान्य दर्द निवारक दवाईयां बिल्कुल बेअसर साबित होती हैं। मनुष्य के मूत्र में यूरिया, क्रिएटनीन, एसिड यूरिक, कैल्शियम, मैग्नीशियम और अमोनिया आदि लवण विद्यमान रहते हैं। यूं तो यह घोल रूप में होते हैं, कितु जब इनकी मात्रा बढ़ जाती है तो इनके कणों से क्रिस्टल बनने लगते हैं। फिर इन पर नये कणों की परत चढती रहती है। ऑक्सलेट वाले पदार्थों का अधिक सेवन, विटामिन डी, अधिक जलीय खाद्य खाने, कम पानी पीने, शरीर से अधिक पानी पसीने के रूप में निकलने, गुर्दे में इनफॅक्शन, कहीं भी मूत्र के सामान्य प्रवाह में बाधा, हाइपरपैराथायरोडिज्म अथवा गाउट रोग होने, लंबे समय तक बीमारी की हालत में बिस्तर पर पड़े रहने जैसे तमाम कारण पथरी के उद्भव और विकास की वजहें हो सकती हैं। सामान्यतः गुर्दे की पथरी वालों को पीठ से पेट की ओर दर्द आता अनभव होता है। मूत्र नली की पथरी होने पर पीठ की निचली ओर से जांघों की ओर दर्द का अहसास हाता है। इसके अतिरिक्त दोनों ही तरह की पथरियों में मूत्र के साथ एक दो बूंद खून आना, बुखार का आभास और मूत्र त्याग करते समय जलन की समस्या भी सामने आ सकती।
प्रोस्टेट बढ जाने से भी पथरी की समस्या पैदा हो सकती है। पहले यह माना जाता था कि पथरी बड़ों (30 से 60 वर्ष की उम्र तक) को ही होती है किंतु अब यह रोग 5 वर्ष से बड़े बच्चों में भी देखने में आ रहा है। पेट के रंगीन एक्स-रे अथवा अल्ट्रासाउंड से यह स्पष्ट हो जाता है कि पथरी कहां है और कितनी बडी है। कुछ हद तक पथरी होने न होने का पता मूत्र जांच से भी पता लग जाता है, इसलिए आमतौर पर डॉक्टर पहले पेशाब की जांच कराते हैं। पेशाब की जांच में जिस तरह के क्रिस्टल अधिक पाए जाते हैं उसी तरह की पथरी गर्दे या मूत्राशय में पायी जाती है। पेशाब की जांच से गर्दे में संक्रमण होने अथवा न होने का पता भी चल जाता है। पथरी यदि एक सेंटीमीटर तक ही बड़ी हो तो वह काफी हद तक पानी से निकल सकती है। 
बड़ी पथरियों के मामले में ऑप्रेशन ही एकमात्र उपाय है। पथरी छोटी हो या बड़ी, उसके निकलने से पूर्व कुछ खाद्य वस्तुओं का निषेध जरूरी है। पालक, बथुआ, सरसों का साग, टमाटर, मेथी, मूली, चौलाई के पत्ते, पत्तागोभी, सलाद, मूंगफली, सूखे मेवे, चाय, चॉकलेट, मछली, अंडा, दूध मांस, समुद्री खाद्य वस्तुएं, विटामिन डी की गोलियां और कैल्शियम वाले पदार्थ वर्जित हैं। आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथिक दवाएं बड़ी पथरी निकाल पाने में नाकामयाब रही हैं। छोटी पथरी अधिक पानी पीने से वैसे ही निकल जाती है। आप्रेशन के कई तरीके अब प्रचलन में हैं। 
प्राइवेट यूरोलॉजी में टोकरी जैसा ट्यूब मूत्र नली में डालकर पथरी खींच ली जाती है। लियोट्रिप्सी नामक तकनीक में तीन सेंटीमीटर तक की पथरी शॉक-वेव्स से तोड़कर चूरा कर दी जाती है। इसके अलावा दूरबीन विधि से मामूली सा छेदकर पथरी निकाल ली जाती है लेकिन यह दोनों ही तकनीक थोड़ी महंगी पड़ती हैं। 
चौथी तकनीक में थोड़ा पैसा कम लगता है पर चीरा बड़ा लगता है और काफी दिनों तक दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। एक बार पथरीशरीर से बाहर निकल जाने के बाद बेफिक्र न हो जाएं कि अब पथरी का खतरा हमेशा के लिए खत्म। जिनके एक बार पथरी हो गई उनमें फिर पथरी बन जाने की पूरी संभावना है यदि खानपान में परहेज किया तो।
पथरी निकलवाने के बाद यह ध्यान रखना है कि पानी खूब पिएं सर्दी के मौसम में लगभग 4 लीटर और गर्मियों में 5-6 लीटर। इसके अलावा पथरी बनाने वाले खाद्य पदार्थ अल्प मात्रा में सेवन करने होंगे। यदि सादा पानी अधिक पीना संभव न हो तो जूस और शर्बत आदि पी सकते हैं। 
ऐसे लोगों को वर्ष में दो बार जांच करा लेना भी ठीक रहता है क्योंकि अधिकतर लोगों को तब तक पथरी का पता नहीं चल पाता जब तक वह काफी बडी न हो जाए। पथरी का ऑपरेशन कराने से पूर्व एक नहीं कई अनुभवी डॉक्टरों और ऐसे लोगों से सलाह-मशविरा कर लेना चाहिए जिनका पथरी के लिए ऑप्रेशन हो चुका हो।