एक जमींदार ने बहुत सारी जमीन पर धान की फसल रोप दी, उसकी रखवाली के लिए चारों ओर मचान बनाकर अनेक नौकर भी तैनात कर दिए। वे रात-दिन रखवाली करते, लेकिन फिर भी पक्षी आकर फसल खा जाते। नौकरों ने यह बात जमींदार को बताई, तो जमींदार ने रखवालों को जाल फैलाने का आदेश दिया, ताकि पक्षियों को पकड़ा जा सके। एक दिन उसमें एक सुंदर पक्षी फँस गया, नौकरों ने उसे पकड़ा और जमींदार के पास ले गए।
उन्होंने कहा- "मालिक! यह पक्षी रोज हमारे खेतों से भरपेट धान खाता है और खाने के बाद कछ धान की बालियों को मुँह में दबाकर उड जाता है।"
जमींदार ने सुना तो बोला-"अच्छा, अब हम इसे सजा देंगे।"
तभी पक्षी बोल पड़ा "सजा देने से पहले आप मेरी भी सुन लें।"
जमींदार ने कहा-"ठीक है कहो!" पक्षी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा- "आपके इतने बड़े खेत से मेरे चोंच भर हिस्सा लेने से आपका कुछ विशेष नुकसान नहीं हो जाएगा। मैं अपने खाने के बाद, केवल छह बालियाँ लेकर जाता हूँ।"
जमींदार ने पूछा-"किसलिए?"
पक्षी ने कहा-"मैं दो बालियाँ अपने वृद्ध माता-पिता के लिए लेकर जाता हूँ, उन्हें अब दिखाई नहीं देता है। मेरा कर्तव्य है कि मैं अपने वृद्ध माता-पिता का पालन-पोषण करूँ, उन्हें भूखा न रखू।
दो बालियाँ अपने नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए लेकर जाता हूँ और दो बालियाँ परमार्थ रूप में अपने बीमार पड़ोसियों के लिए लेकर जाता हूँ, यदि जीवन में इतना परमार्थ भी न कर सकूँ तो मेरा जीवन व्यर्थ है।"
पक्षी का कथन सुनकर जमींदार सोचने पर मजबूर हो गया, उसे लगा यह पक्षी सजा का नहीं साधुवाद का अधिकारी है। हम मानवों को भी पक्षी से प्रेरणा लेनी चाहिए और उसने पक्षी को आजाद कर दिया।