मौत इक गीत रात गाती थी
जिन्दगी झूम झूम जाती थी
कभी दीवाने रो भी पडते थे
कभी तेरी भी याद आती थी
किसके मातम में चांद तारों से
रात बज्मे-अजा सजाती थी
रोते जाते थे तेरे हिज्र नसीब
रात फुरकत की ढलती जाती थी
खोई खोई सी रहती थी वो आंख
दिल का हर भेद पा भी जाती थी
जिक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में
तेरी तस्वीर उतरती जाती थी
हुस्न में थी इन आंसूओं की चमक
जिन्दगी जिनमें मुस्कुराती थी
दर्द-ए-हस्ती चमक उठा जिसमें
वो हम अहले-वफा की छाती थी
तेरे उन आंसूओं की याद आयी
जिन्दगी जिनमें मुस्कुराती थी
था सूकूते-फजा तरन्नुम रेज
बू-ए-गेसू-ए-यार गाती थी
गमे-जानां हो या गमें-दौरां
लौ सी कुछ दिल में झिलमिलाती थी
जिन्दगी को वफा की राहों में
मौत खुद रोशनी दिखाती थी
बात क्या थी कि देखते ही तुझे
उल्फते-जीस्त भूल जाती थी
थे ना अफलाके-गोश बर-आवाज
बेखुदी दास्तां सुनाती थी
करवटें ले उफक पे जैसे सुबह
कोई दोसीजा रस-मसाती थी
जिन्दगी जिन्दगी को वक्ते-सफर
कारवां कारवां छुपाती थी
सामने तेरे जैसे कोई बात
याद आ आ के भूल जाती थी
वो तेरा गम हो या गमे-दुनिया
शमा सी दिल में झिलमिलाती थी
गम की वो दास्ताने-नीम-शबी
आसमानों की नीन्द आती थी
मौत भी गोश भर सदा थी श्फिराकश्
जिन्दगी कोई गीत गाती थी