दुख देने वाले को माफ करना मुश्किल होता है। क्रोध, अपमान और बदले की भावनाएं रह-रहकर कचोटती है। अपने में अटकाकर रखती है। माफ न करना जहां हमें खुद में सीमित रखता है, वहीं माफ कर देना खुद से परे नई संभावनाओं तक ले जाता है। माफी देने के बाद एक कड़वा अनुभव हमारी यादों में सिर्फ एक विचार बनकर रह जाता है -सम्पादक।
रूकना जैसे ठहरा पानी
आपको हुआ एक अनुभव कुछ समय बाद अतीत बन जाएगा। तो फिर उसे अपने मन मस्तिष्क पर क्यों ओढ़े हैं? इससे आपका वर्तमान भी वैसा ही दुखमय हो रहा है? हम सबका जीवन एक नाटक की कहानी की तरह होता है, जिसका हर चरित्र महत्वपूर्ण होता है। वरना नाटक की कहानी पूरी कैसे होगी? नायक, खलनायक, अच्छे-बुरे सबको स्वीकार करते हुए अगले अध्याय में प्रवेश करें।
खुद के जैसे बन रहने का वादा एक वादा अपने आप से जरूर करें। वह यह कि चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियां आएं, आप अपनी सकारात्मकता को प्रभावित नहीं होने देंगे। आपको जो दुख हुआ है, उसकी कड़वाहट निकालने के कई सकारात्मक तरीके हैं। डायरी लिखना, काउंसलिंग लेना, किसी से बात करना, अपना दुख बांटना आदि। लेकिन उस कड़वे अनुभव से अपने व्यक्तित्व को प्रभावित न होने दें। अपने कड़वे अनुभव को शांति पाने का माध्यम बनाएं।
मन में क्रोध लेकर न सोएं
नेविले गोडार्ड ने कहा है कि एक व्यक्ति की अपने बारे में जो राय होती है, नींद के दौरान वह उसके अवचेतन मन में बैठ जाती है। जब मैं सोने के लिए जाता हूँ तो मैं यह कभी नहीं भूलता कि मेरी नींद की दुनिया में नींद लेने से ठीक पहले के विचार राज करेंगे। इसलिए सोने से पहले नकारात्मक अनुभव से दूर रहने के लिए मैं कुछ वाक्यों को दोहराता हूँ - जैसे कि मैं शांत हूँ, मैं संतुष्ट हूँ आदि। कुछ समय बाद ही मुझे अनुभव होता है कि मेरे शरीर में इन भावनाओं की जो कमी थी, वह पूरी हो गई है। दूसरे दिन जब जागता हूं तो खुद को मुक्त पाता हूँ।
दोष न दें, खुद को समझें :
जब भी आप किसी के व्यवहार के कारण दुखी हो तो आपकी राय में जिससे आपको दुख पहुंचा है, उससे अपना ध्यान हटा लें। अपनी ऊर्जा उस दुख पर केन्द्रित भले ही कर दें, लेकिन उस दुख का स्रोत बने व्यक्ति से उसे हटा लें। खुद को भी दोष न दें। बस उस अनुभव को कुछ दिन दें। खुद को बताएं कि इस दुनिया में आपको दुख पहुंचाने का अधिकार किसी को नहीं है। दूसरे को समझने के बजाय खुद को समझने पर ध्यान दें। जब आप अपने ऊपर दूसरों के प्रभाव को देखने का तरीका बदलने का निर्णय लेते हैं तो अपने कई उजले पक्षों को जानते हैं। तब माफी देना बहुत ही आसान हो जाता है।
पानी की तरह सुखकारी :
आसपास अपना प्रभाव डालने की जिद के बजाय पानी की तरह बनना सीखें। पानी की प्रवृत्ति होती है कि वह स्रोत फूटने की जगहें तलाशता है। विरोध की विचारधारा के प्रति सहनशील होकर अपने व्यक्तित्व के रूख पक्ष को नर्म और मधुर बनाएं। सुनना शुरू करें अगर कोई राय देता है तो कुछ यू उत्तर दें, 'मैने ये तो सोचा ही नहीं। इस बारे में मैं जरूर सोचूंगा।' जब आप दखल नहीं देते और पानी की तरह धीरे-धीरे, नर्मी से बिना बाधा बहते जाते हैं, तब आप स्वयं ही क्षमा हो जाते है। एक अभ्यास और करें। मन में खुद की पानी की तरह की छवि बनाएं। आखें बन्द करके इस जल को अपने स्व के रूखे और कठोर पहलुओं में प्रवेश कराएं। जिनसे मतभेद हुआ, उनके दिल और जीवन में इस नर्मी को बहने देने की कल्पना करें। इससे आप रिश्तों का सकारात्मक पक्ष देखेंगे।
अपमान को भूल जाएं :
लाउज ने कहा है - किसी प्रहार का प्रत्युत्तर दयालुता से देने का खतरा किसी को तो उठाना ही होगा, वरना आक्रामकता कभी भी अच्छाई में नहीं बदलेगी। याद रखें कि कोई भी तूफान ज्यादा देर तक नहीं रहता। आक्रामकता का एक समय होता है, तो अच्छाई का भी। अपने अपमान को भूलकर इस दुश्चक्र को बढ़ने से रोकना होगा।
करूणा व प्रेम का प्रसार :
मैंने कई साल पतंजलि की शिक्षाएं पढ़ीं। उन्होंने कई हजार साल पहले ही यह कहा था कि जब हम दूसरों को हानि पहुंचाने वाले विचारों से खुद को दूर कर लेते हैं तो सभी शत्रु भाव से मुक्ति पा जाते हैं। मैंने जब भी खुद को क्रोध व आलोचना में जकड़ा हुआ पाया है तो मैंने प्रत्युत्तर में प्रेम-भाव दिखाया है, तो मुझे तुरन्त ही आत्मिक संतोष का अनुभव हुआ है।
झगड़े को खत्म करें, ध्यान धरे :
झगड़े, विरोध प्रतिशोध आदि को खत्म करने के लिए ध्यान का अभ्यास करें। ध्यान की अवस्था में खुद को किसी बड़े झगड़े का प्रेम और क्षमा की भावना से अंत करता हुआ देखें। यह प्रेम-भाव आपके विरोध तक पहुंचेगा जरूर। आपका मौन परिचय यही हो कि - कुछ भी हो जाए, पर मेरा उत्तर प्यार ही होगा।