चर्मरोग विशेषज्ञों का कहना है कि तनाव चमड़ी से जुड़े कई प्रकार के रोगों, जैसे कि डर्मेटाइटिस के लिए जिम्मेदार है। इस रोग में त्वचा खुश्क और खुजली की शिकायत होती है। 25 साल का ममता 10-12 घंटों लंबी ड्यूटी करती हैं, और उन्हें एक सख्त बॉस से पटरी बैठाकर चलना पड़ता है। इससे उन्हें तीन महान में बाल झड़ने की समस्या हो गई। डॉक्टरों के मुताबिक- ऐसा त्वचा में आई खराबी से हआ, और बाल गिरने से उसका तनाव और भी बढ़ गया और सिर में गंजापन साफ नज़र आने लगा। इसके बाद उन्हें न्यूट्रीशन सप्लीमेंट और एंटी-ऑक्सिडेंट देकर तनाव के असर को कम करना पड़ा। तीन महीने इलाज के बाद ही कुछ बाल फिर से आने शुरू हुए।
चर्मरोग विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी आबादी पिछली पीढ़ी की बनिस्पत ज्यादा तेजी से समय से पहले बूढ़ी होती जा रही है। 25 से 40 की उम्र में उनकी त्वचा में झुर्रियां, चकत्ते, काले घेरे और बाल गिरने की समस्या देखने में आ रही है।
शारीरिक मेहनत लाभप्रद
एक और मामला 27 साल की राधा मल्होत्रा का है। अपनी व्यस्त दिनचर्या की वजह से उनका चेहरा मुहांसों से भर गया और गहरे निशान पड़ गए, तो वे परेशान हो उठीं। चार साल से वे एक ब्यूटीशियन से इसका इलाज करवा रही हैं। शुरू में उन्हें एक्ने के इलाज के साथ साल भर तक ग्लाइकोलिक पील्स का कोर्स दिया गया। अब उन्हें अपनी त्वचा को सामान्य रखने के लिए खास परहेज रखने पड़ते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि रोजमर्रा की शारीरिक गतिविधियां स्वतः ही व्यक्ति को स्ट्रैस से मुक्ति दिलाती रहती हैं, लेकिन आजकल लोग शारीरिक श्रम से परहेज करते हैं, और उनके काम के घंटे भी काफी बढ़ गए हैं। बंद इमारतों में बिताया गया लंबा समय त्वचा पर विपरीत असर डालता है। चर्म रोगों के लिए बढ़ता प्रदूषण और खतरनाक पराबैंगनी विकिरण भी काफी हद तक जिम्मेदार है।
इसी तरह हर रोज 12 घंटे की ड्यूटी करने वाली 30 साल की सुनीता का मामला है। उनके पास हमेशा वक्त की कमी रहती है। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सुनीता को नौकरी करते एक साल भी नहीं बीता था कि तनाव और दबाव ने शरीर पर असर दिखा दिया। दो साल पहले वे काले घेरे और खुरदुरी होती त्वचा से काफी परेशान हो उठीं। वे थोड़ी सी मेहनत में ही थक जाती थीं। उनकी डॉक्टर ने बताया कि अगर तब भी वे इसकी उपेक्षा करती, तो सारा शरीर काला पड़ जाता। तब उन्होंने पिग्मेंटेशन कम करने के लिए फोटो-फेशियल करवाया। तब से वे तनाव भगाने के लिए नियमित तौर पर स्किन-केयर के कोर्स और ट्रेनर की देखरेख में हफ्ते में दो दिन योगाभ्यास कर रही हैं।
तनाव के कारण त्वचा में होने वाली ऐसी बीमारियों पर चर्मरोग विशेषज्ञ अक्सर 'माइक्रो-डर्मेब्रेज़न' और 'कोलोन हाइड्रोथेरेपी' जैसी प्रक्रियाओं का मिला जुला प्रयोग करते हैं। उनके मुताबिक सबसे ज्यादा 30 से 50 की उम्र के लोग त्वचा की बीमारियों की शिकायत लेकर आते हैं। ताजा रिसर्च में भी ये तथ्य सामने आया है कि तनाव का असर आजकल कई त्वचा और चर्म रोगों के रूप में सामने आ रहा है। अमेरिकन जर्नल ऑफ पैथोलॉजी के मुताबिक ऐसा इसलिए, कि आखिर त्वचा को ही तो शरीर में सबसे पहले हर प्रकार के संक्रमण को झेलना पड़ता है। हर तरह के बैक्टीरिया और वाइरस से पहला सामना त्वचा के श्वेत रुधिर कणों का होता है, और इनके 'ओवर-रिएक्ट' करने से तनाव और डर्मेटाइटिस की शिकायत हो जाती है।
सोरियासिस जैसी बीमारियां भी मानसिक तनाव से सोरियासिस जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए त्वचा का इलाज करने से पहले इसकी वजह जानना निहायत जरूरी है। ऐसे में इलाज के साथ काउंसिलिंग का असर अच्छा रहता है। अगर त्वचा की बीमारियों का पक्का इलाज चाहते हैं, तो स्ट्रैस को पहले से कंट्रोल करना ज़रूरी है। इसके लिए उचित खानपान और पर्याप्त नींद की दिनचर्या अपनानी चाहिए, ज्यादा से ज्यादा फल और सब्जियां खाएं और हफ्ते में कम से कम चार-पांच बार व्यायाम करें। अगर तनाव की समस्या दूर न किया जाए, तो पहले साइको-पैथेलॉजिकल डिसॉर्डर का खतरा, और फि ट्रिकोटिलोमैनिया की भयावह समस्या हो सकती है, जिससे रोगी में अक्सर अपने ही बालों को नोच डालने की ज़बर्दस्त तलब उठने लगती है।