श्रीमद् भागवत पुराण में शुकदेव जी ने कहा है कि चन्द्रमा अन्नमय और अमृतमय होने के कारण समस्त जीवों के प्राण और जीवन है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि "मनो हि हेतुः सर्वेषाम् इंद्रियाम" अर्थात इंद्रियों की क्रियाशीलता मन पर निर्भर करती है। नवग्रहों में दूसरा स्थान चन्द्रमा को प्राप्त होता है। यह हमारी पृथ्वी का एक मात्रा सर्वाधिक निकट उपग्रह है। इसका प्रभाव मनुष्य, वनस्पति, समुद्र एवं मौसम पर गहरा पड़ता है।
साहित्य में भी चन्द्रमा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। काव्य प्रेमी अपनी प्रियतमा को चन्द्रमा की उपमा देते हैं। यह मन का कारक है। ज्योतिष के अनुसार मन, बुद्धि, मस्तिष्क की स्थिति छाती, फेफड़े, पाचन तंत्र, गर्भाशय, बाई आंख, रक्त, रिश्तों में मां-बेटी का कारक ग्रह माना जाता है। निर्बल चन्द्रमा मंगल, अस्त, बुध, शनी या राहु से युक्त दृष्ट या इनके साथ होकर 1-5-9-6-8-12 में बैठा हो तो जातक की शारीरिक और मानसिक स्थिति बहुत खराब रहती है। अशुभ चन्द्रमा कमजोर शरीर, नेत्र रोग, शत्रुओं से भय, शारीरिक और मानसिक कष्ट देता है। मनुष्य के दिमाग में लगातार उठते भावों का व प्रतिदिन एवं भविष्य का अनुमान भी चन्द्रमा की स्थिति से लगाया जा सकता है। व्यक्ति के अंत: करण संवेदनाएं मानसिक स्थिति आदि का विचार चन्द्रमा ग्रह द्वारा किया जाता है। आधुनिक जीवन शैली के प्रभावानुसार डिप्रेशन और अकेलेपन के कारण पागलपन एवं मस्तिष्क रोग की संभावना बढ़ जाती है। लग्न में चन्द्रमा को जब शनि या राहु देखते हो तो व्यक्ति नींद में भी अपने को अकेला अनुभव करता है, तभी धीरे-धीरे इस रोग की शुरूआत होती है। यह रोग निराशा, दु:ख, दर्द, शोक आदि से भी होता है। डिप्रेशन जैसे जटिल रोग भी इसी प्रकार होते हैं, इस रोग के समय व्यक्ति कभी-कभी अधिक हंसना, शोर मचना, ज्यादा बातें करना, अकेले में बातें करना इत्यादि प्रमुख लक्षण होते हैं।
1.शनि, मंगल सप्तम में, चन्द्रमा-शनि या राहु के साथ 12वें भाव में।
2.अत्यधिक कमजोर चन्द्रमा, पापी ग्रह लग्न 5 या 9 में।
3.चन्द्रमा, बुध लग्न में।
4.कमजोर चन्द्रमा मंगल के साथ, राहु या शनि 8 वें में।
5.चन्द्रमा बुध एक साथ 6-8-12 भाव में
6.चन्द्रमा/शनि, केतु एक साथ मंगल से दृष्ट हो।
7.अष्टम का स्वामी चन्द्रमा या शुक्र के साथ 2, 6,8,11,12 में।
ज्योतिषानुसार उपाय-
आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ नीचे लिखे उपाय भी लाभकारी सिद्ध होंगे। चद्रमा सोम के नाम से भी जाने जाते हैं तथा मन, औषधियों एवं वनस्पतियों के स्वामी माने गये हैं।
1.सांध्यकाल में चन्द्रदेव की दूध व चीनी मिश्रित जल से अर्घ्य देकर निरोगी काया का आशीर्वाद प्राप्त करें।चन्द्रोपासना में चन्द्र नमस्कार के लिए इस मंत्र का उच्चारण करें।
दधि शंख तुषारामं श्रीरोदार्णव सम्भवम् नमामि शशिनं भक्त्या शम्मोमुर्कट भूषणम्।।
2. प्रत्येक सोमवार की शाम के समय श्वेत चन्दन की या तुलसी की माला से बीज मंत्र, ऊं श्रां श्री श्रौं सः चन्द्राय नमः या ऊं सों सोमाय नमः मंत्र का श्रद्धापूर्वक जाप करें। ब्राह्मण से आवश्यक हो तो 11000 संख्या में जाप करवायें।
3. चन्द्र ग्रह की प्रसन्नता और शान्ति के लिए सोमवार का व्रत, शिवोपासना करना शुभकारी रहेगा। ग्रह की स्थिति अनुसार चांदी की अंगुली में मोती धारण करें। चन्द्रमा के अधिदेवता शिव हैं। अत: महामृत्युंजय मंत्र का जाप, शिव पूजा, एवं शिवकवच का पाठ अति लाभकारी होता है।
4.नीच व निर्बल चन्द्रमा कुण्डली में हो तो मां के चरण स्पर्श कर काम शुरू करना चाहिए।
5. दान में चावल, कपूर, सफेद वस्त्र, चांदी, शंख, सफेद चन्दन, चीनी, दही, मोती का दान किसी स्त्री पात्र को देना चाहिए धर्मस्थान पर पानी का नल लगवायें।