सयामनतका-मणि या प्रचलित नाम कोहिनूर नामक विशाल हीरा भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास का प्रमुख अंग रहा है, जो सदियों तक हिन्दू राजाओं की सम्पत्ति रहा और अंत में अंग्रेजी महारानी विक्टोरिया तक पहुंचा। सयामनतका मणि ने अनेक रोचक, विवादास्पद कथा कहानियों को जन्म दिया।
मध्यकाल में सयामनतका मणि मालवा क्षेत्र के राजा की युद्ध में पराजय के बाद समरकंद से आए आक्रमणकारी बाबर की सम्पत्ति का अंश बना ली गई। मालवा क्षेत्र के राजा की सेना को बाबर पुत्र हुमायूं ने पराजित किया और राजा के परिवार के सदस्यों को बंदी बना लिया गया। उन्हें जीवित छोड़ने के लिए सयामनतका मणि और धन आदि को हुमायूं को भेंट दिया गया।
''बाबरनामा'' में लिखा गया-4 मई, 1526 में बाबर की सेना से हारने पर मालवा के राजा को मणि हमायूं को पेश करनी पड़ी। साथ ही यह भी लिखा गया कि यह वही मणि थी जो 200 वर्ष पूर्व आलउद्दीन खिलजी को भी दी गई थी, परंतु युद्ध उपरांत उसने सयामनतका मणि मालवा-राज्य को लौटा दी थी। बाबर के अनुसार हीरा बहुमूल्य था-उसके मूल्य से संसार भर की जनसंख्या का ढाई दिन का भोजन खरीदा जा सकता था। क्या बाबरी हीरा ग्वालियर के कच्छवाहा शासकों से तोमर राजा विक्रमजीत को विरासत में मिला था? ऐसे अनेक प्रश्न का उत्तर स्पष्ट नही हैं।
सयामनतका मणि का श्राप निरंतर मुगल शासकों को दुर्भाग्य देता रहा। हुमायूं के बीमार पड़ने पर बाबर की मृत्यु, फिर हुमायूं को देश निकाला और बाद में बादशाह बनने के बाद पुराने-किले की सीढ़ियों से गिरकर मृत्यु हुई। अकबर ने कभी भी बाबरी हीरे का प्रयोग नहीं किया और उसे अपने से दूर रखा। उसके बाद शाहजहां ने उसे मुगल खजाने से निकाला और कुछ साहित्यकारों के अनुसार मयूरसिंहासन (तख्ते ताऊस) में जड़ा जिसे 1747 में परशिया का आक्रमणकारी का नादिर शाह ले गया।
विशाल हीरे को देखकर नादिर शाह ने उसे प्रकाश का पर्वत कोहिनूर नाम दिया जिससे वह आज तक प्रसिद्ध है। कोहिनूर पाने के बाद नादिर शाह की मृत्यु हो गई और उसका विशाल शासन जर्जर हो गया।
अफगानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली ने कोहिनूर ले लिया जिसके बाद वह दूसरे शासक शाह शूजा के पास पहंुचा। युद्ध में बंदी बनाए जाने पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने उसकी सहायता की और उसके बदले में कोहिनूर मांगा। इस प्रकार से कोहिनूर की वापसी भारतीय उपमहाद्वीप में हुई। महाराजा रणजीत सिंह के जीवन में अनेक उतार चढ़ाव आए और उन्होंने कोहिनूर को अपनी वसीयत में उड़ीसा के जग्गनाथ मंदिर को देना चाहा। मृत्यु शय्या पर बनी इस वसीयत को अंग्रेजी शासकों ने लागू नहीं होने दिया और पुरानी संधि में लिखें अनुसार कोहिनूर को महारानी विक्टोरिया को दिया जाए को ही सत्य बताया। फिर महाराजा के 13 वर्षीय पुत्र दलीप सिंह को विवश कर इंग्लैंड ले जाकर, उससे कोहिनूर महारानी विक्टोरिया को भेंट करवाया।
1851 से आज तक कोहिनूर ब्रिटेन की रानियों के ताज की सजावट बनकर रह गया है जिसे लंदन के टावर ब्रिज म्यूजियम में देखा जा सकता है। एक अन्य विवादास्पद कहानी अनुसार यह विशाल हीरा काकातिया-शासकों के पास रहा जहां से उसे तुगलक शासकों ने ले लिया। जब काकातिया शासक प्रतापरूद्रा उनसे युद्ध में हार गया। फिर विशाल-हीरा तुगलकों से सैयद शासकों के पास, लोधी शासकों के पास और अंत में बाबर के पास पहुंचा।
कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि यह हीरा 5000 वर्ष पूर्व गोदावरी नदी के तह में आंध्र-प्रदेश में मसूली पटनम् क्षेत्र के पास मिला जिसे अंग-प्रदेश के नरेश पहनते थे। आंध्रप्रदेश का गोलकोन्डा क्षेत्र विश्व के प्रसिद्ध और प्राचीन हीरों का जन्म स्थल माना जाता है। प्राचीन साहित्यों अनुसार गोलकोन्डा हीरें संसार के सर्वाधिक प्रसिद्ध और उच्चकोटि के हीरे माने गए हैं। प्राचीन समय से हीरे केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही पाए जाते थे।