क्रोध एक नकारात्मक मनोवृति है। क्रोध सबसे पहले उस शख्स का नुकसान करता है जो दूसरे पर क्रोध करता है। क्रोध हमारी जीवनचर्या का एक अंग है। स्वभावतः क्रोधी व्यक्ति उत्तेजना की आग में जलता रहता है। जैसे एक गीली लकड़ी भीतर से सुलगती रहती है और अंत में लकड़ी को खाक कर डालती है। यही हश्र क्रोधी लोगों का भी होता है। क्रोध व्यक्ति को सहज स्वभाव से विचलित कर वैमनस्य फैलाता है जो आपसी विवादों को जन्म देता है। क्रोधी व्यक्ति विभिन्न तर्कों से अपने पक्ष को सही समझाने का प्रयत्न करता है ताकि उसका क्रोध जायज समझा जाए। गलतियां हो पर क्रोध करके एक और गलती बढ़ाने से अच्छा है उससे सीख ली जाए। इसका बाह्म परिणाम आसपास के वातावरण को विषाक्त बनाता है और आंतरिक परिणाम अंदर से विनाश करता है। कटाक्ष, व्यंग्योक्ति, तनाव, भूख, थकान, असफलता और असंतोष क्रोध पैदा करते हैं।
वातावरण को विषाक्त बनाता है और आंतरिक परिणाम अंदर से विनाश करता है। कटाक्ष, व्यंग्योक्ति, तनाव, भूख, थकान, असफलता और असंतोष क्रोध पैदा करते हैं। कभी-कभी बीमारी, वृद्धावस्था, अकेलापन आदि भी क्रोध पैदा करते हैं। यह किसी भी तरह से शालीन व्यक्ति का लक्षण नहीं है। जिस वृत्ति से सहृदयता कुटिलता में बदल जाए और उसका परिणाम स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो, उस वृत्ति का नाश अवश्य करना चाहिए। यह तो सच है कि हम औरों को अपने जैसा न तो बना सकते हैं और न बनने के लिए बाध्य कर सकते है, पर स्थिति जब ज्यादा विपरित न हो, तब उनके अनुसार स्वयं को ढाल सकते हैं। किसी व्यक्ति से द्वेष होना मानवीय कमजोरी है जो हमारी सुख-शांति छीन लेता है। यह क्रोध का ही उग्र परिणाम है। पहले से किसी के प्रति खराब छवि अपने मन में बना लेना ठीक नहीं है। फिर वह आदमी चाहे कितता भी अच्छा क्यों न हो हमारी छाप उसके प्रति खराब ही रहेगी। इसलिए समय के अनुसार वर्तमान में जीते हुए अपना विचार बनाना चाहिए। किसी के प्रति विचार बनाने के पहले उसके परिवेश और परिस्थिति को ध्यान में रखना चाहिए। क्रोध और इससे जुड़ी अन्य वृत्तियों से अगर हम परहेज नहीं कर सकते तो कम से कम इसे आत्मसंयम द्वारा नियंत्रित करने की कला सीखनी चाहिए। आत्मसंयम क्रोध से विरक्त होने का प्रथम द्वार है जो योग व अन्य विधि से कम किया जा सकता है।