जापान का प्राचीन ग्रंथ 'निहोन शोकी' में सूमो पहलवान का जिक्र है। पहले यह पहलवान 'सुमाइ' नामक अखाड़े में उतरा करता था। फिर समय के साथ जैसे-जैसे खेल में तब्दीलियां हुई, इसके खिलाड़ी 'सूमो' कहलाने लगे। ।
यह युद्ध केवल युद्ध की कला नहीं होती, बल्कि इसका इतिहास शिन्तो परम्परा से भी जुड़ा हुआ है। आज भी शिन्तो दैवीय आत्मा 'कामी' को प्रसन्न करने के लिए पारम्परिक नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। पुराने समय में भी यह खास परम्परा हुआ करती थी। इसमें अलग-अलग क्षेत्रों से प्रतिद्वंद्वी बुलाए जाते थे। इस तरह के आयोजन को 'सुमाइ पार्टी' कहा जाता था। जैसे ही इस परम्परा को खेल का दर्जा मिला, इसके टूर्नामेन्ट का आयोजन शुरू हो गया।
सोलहवीं शताब्दी में इसकी मातृभूमि यानी जापान के 'ओडा नोब्यूनागा' में पहला टूर्नामेन्ट आयोजित किया गया। इसके दौरान खिलाड़ी परम्परागत लंबा विबाज पहनते थे. जो कि आजकल पहनी जाने वाली 'मवेशी' से बिल्कुल अलग हुआ करती थी। तोकुगातानहीं काल (1603-1868) में ये पहलवान कुश्ती के दौरान 'केशो मवेशी' पहनते थे। जबकि आजकल यह पहनावा सिर्फ प्री टूर्नामेन्ट में परम्परा के तौर पर धारण किया जाता है। जैसे-जैसे जापान में इस खेल को गम्भीरता से लिया जाने लगा प्रोफेशनल सूमो की गिनती में भी इज़ाफा हुआ। अब इनके सामने खाली परम्परा का ही प्रश्न नहीं था,बल्कि रोजी-रोटी का सवाल भी था। इस तरह के चलन से हार-जीत भी महत्वपूर्ण हो गई थी, जिसका सटीक फैसला करना मुश्किल हो गया था। इसी कारण कुश्ती का विजेता घोषित करने के लिए नियम-कायदे बनाए गए। इस नियम के अनुसार विजेता को जमीन स्पर्श करना होता है।
ज़रा अखाड़े की संरचना पर गौर फ़रमाएं-
अखाड़े के चारों ओर 'दोहियों' रिंग लगाई जाती है जो कि चावल की बालियों से मिलकर बनी होती हैं। खेल शुरू होने से पहले सभी प्रोफेशनल सूमो 'ग्लोजी' यानी रेफरी के चारों ओर गोला बनाकर खड़े होते हैं। वर्तमान समय में प्रोफेशनल सूमो पहलवानों ने जापानी सूमो एसोसिएशन नाम की एक संस्था बनाई है। इसके सदस्य ओकापावा' के नाम से पुकारे जाते हैं। सभी सूमो पहलवानों को शिकोवा कहा जाता है जो वास्तविक नाम से कभी संबंधित हो भी सकता है और नहीं भी। कभी-कभी इन पहलवानों को नाम चुनने की छूट दी जाती है। वैसे इस रियायत विदेशी सूमो पहलवानों जाती है। एक सूमो पहलवान अपने करियर के दौरान नाम बदल सकता है।
पहलवानों को उनके प्रदर्शन के आधार पर ६ श्रेणियां तय की गई हैं । प्रदर्शन के आधार समो की छह श्रेणियां तय की गई है। मकूची, जरयो, मकुशिता, लडान्म, जीनोदान और सबसे निचली श्रेणी जानाकुची की होती है। इसमें 80 पहलवानों का रखा जाता है। दो श्रेणी 'सेकितोरी' कहलाती हैं। जबकि बाकी श्रेणिया 'रिकिशी' के नाम से जानी जाती हैं।
मकूची पहलवान सबसे मशहूर पहलवान माने जाते हैं। इनके प्रशंसकों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। इन कुश्तीबाजों की भीड़ 'मोगाशिरा' कहलाती है, जिसमें तकरीबन सत्रह से अट्ठारह पहलवान होते हैं। मोगाशिरा से ऊपर के चैम्पियन 'सन्याक' कहलाते हैं। ये कोमुसुबी, सेकिवेक, ओजेकी और योकोजुना की श्रेणी में रखे जाते हैं।
योकोजुना यानी महान कुश्तीबाज की उपाधि उन्हें दी जाती है जो नियमित रूप से कुश्तियां जीतते हैं। हालांकि पदोन्नति का आधार काफी सख्त है। अगर सामान्य तौर पर कहा जाए तो एक ओजेकी को योकोजुना की पदवी पाने के लिए लगातार दो टूर्नामेन्ट तो जरूर जीतना होता है। जापान में हर साल इस प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।