कहीं आपको "मूड डिसॉर्डर" तो नहीं !


असामान्य परिस्थितियों और अनुभव के कारण मानव व्यवहार में परिवर्तन आता है जिसे मूड डिसॉर्डर कहते हैं। मूड डिसॉर्डर को ही प्रभावित विकार भी कहा जाता है। सामान्य रूप से मनःस्थिति विकार (मूड डिसॉर्डर) में बाइपोलर डिसॉर्डर, डिप्रैशन, पोस्टमार्टम डिप्रैशन, साइक्लोथीमिया, स्कीज़ोअफैक्टिव डिऑर्डर और सीज़नल अफैक्टिव डिसॉर्डर है।


कुछ मूड डिसॉर्डर में दवाइयों और फिज़िकोथैरेपी (मनोरोग चिकित्सा) का भी इस्तेमाल किया जाता है।


मूड डिसॉर्डर को यूनिपोलर डिसॉर्डर भी कहा जाता है। यूनिपोलर डिसॉर्डर का एक उदाहरण सर्वर डिप्रेशन भी है जिससे बच्चों से लेकर बड़े सभी प्रभावित होते हैं। डिप्रैशन के कुछ विशिष्ट लक्षण होते हैं जैसे महत्वपूर्ण घटना या कोई रुचि, सोने का कोई नियम न होना, थकावट, आत्महत्या के विचार, एकाग्रता की कमी, मन में ग्लानि भाव। मुख्यतः जिस व्यक्ति में डिप्रैशन के ये लक्षण दो सप्ताह रहते हैं, उसे मूड डिसॉर्डर होना स्वाभाविक होता है।


मेनिया मूड डिसॉर्डर का एक अन्य प्रकार है। इसमें डिप्रैशन के लक्षण अलग होते हैं। जिसमें व्यक्ति अपनी अवास्तविक छवि बना लेता है, सोने में कमी होने लगती है, रेल की - रफ्तार की तरह विचारों का आवागमन होता है, खुद को हानिकारक गतिविधियों में व्यस्त रखना, अशांत भावों में बढ़ोत्तरी होती है। ये लक्षण दवा लिए जाने पर भी निरंतर बने रहें तो । वह मेनिया डिप्रैशन होता है।


बाइपोलर डिसॉर्डर कभी मेनिक डिप्रैशन के साथ भी होता है। इसमें मेनिया, डिप्रेशन दोनों के लक्षण अलग समय पर विद्यमान रहते हैं। जिसे बाइपोलर डिसॉर्डर होगा उसे कुछ महीने मेनिया और फिर डिप्रैशन आ जाता है। कुछ मरीजों में समय कुछ घंटों का होता है। अमेरिका के एक प्रतिशत युवा इससे प्रभावित हैं। लोगों को अक्सर यह स्वीकार करना मुश्किल होता है, कि उन्हें मूड डिसॉर्डर है।