पेड़-पौधों के बिना जीवन मुमकिन नहीं है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभों से ये इंसानियत को जिंदा रखे हुए हैं। अब यही पेड़-पौधे अंधेरे को भी दूर करेंगे। अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीटयूट आफ टेक्नोलाॅजी आफ टेक्नोलाॅजी के वैज्ञानिकों ने ऐस पेड़-पौधे तैयार किए हैं, जो हल्का प्रकाश छोड़ते हैं। यह शोध नैनों लेटर्स नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिक के अनुसार इन्हें टेबल लैप और स्ट्रीट लाइट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा।
कई घंटे देगा रोशनी: पौधों में रौशनी उत्पन्न करने के लिए बाहरी संसाधन की जरूरत नहीं होगी। पौधों के ऊर्जा चयापचय (मेटाबाॅलिज्म) से ही उनमें प्रकाश उत्पन्न होगा। शोध के शुरूआती दौर में इस खास पौधे से 45 मिनट तक रोशनी मिली। लेकिन कुछ सुधारों के बाद इससे 3.5 घंटे तक रोशनी मिली। वैज्ञानिकों के मुताबिक इन्हें कई घंटे तक रोशनी देने के लिए सक्षम बनाया जा रहा है।
ऐसे पहुंचाया पौधे के अंदर:
ल्यूसीफेरेज को सिलिका के अति सूक्ष्म कणों, ल्यूसीफेरिन को पीएलजीए और को-एंजाइम ए को चीटोसन नामक पाॅलीमार के अति सूक्ष्म कणों में भरा गया। इसके बाद पौधो की पत्तियों तक भेजा गया। इसके लिएि पौधों को एक घोल में भिगोया गया और फिर उनपर अत्याधिक दबाव डाला गया। इससे अति सूक्ष्म कण पत्तियों में मौजूद स्टोमैटा नामक सूक्ष्म छिद्रों से उनमें प्रवेश कर गये।
रासायनिक प्रतिक्रिया से मिली रौशनी:
ल्यूसीफेरिन और को-एंजाइम ए पत्तियों की अंदरूनी परत मेजोफिल में समा गये। ल्यूसीफेरेज वाले कण पौधों की कोशिकाओं में चले गये। पीएलजीए कर्णों से निकला ल्यूसीफेरिन पौधों की कोशिकाओं में गया। वही पर ल्यूसीफेरेज के रासायनिक प्रतिक्रिया करने पर ल्यूसीफेरिन जगमग हुआ।
खास पदार्थों का इस्तेमाल:
पेड़-पौधों में रोशनी उत्पन्न करने के लिए वैज्ञानिकों ने इनमें ल्यूसीफेरेज नामक एंजाइम इस्तेमाल किया। यही एंजाइम जुगनुओं को उनकी रोशनी उपलब्ध कराता है। ल्यूसीफेरिन भी इस्तेमाल किया गया। ल्यूसीफेरेज इस अणु से मिलकर प्रतिक्रिया देता है, जिससे प्रकाश उत्पन्न होता है। को-एंजाइम ए नामक अणु भी इस्तेमाल हुआ। यह पुरी प्रक्रिया के दौरान ल्यूसीफेरेज की कार्यप्रणाली में बाधा डालने वाले उपोत्पाद (बायोप्रोडक्ट) को नष्ट करता है।