महाभारत का युद्ध चल रहा था। अश्वत्थामा द्वारा छोड़े गये नारायण अस्त्र से पांडवों के असंख्य सेनिकों का विनाश हो गया। अर्जुन ने यह दृश्य देखा, तो अश्वत्थामा को ललकार कर उन्होंने कहा, अपने बल और पराक्रम का प्रभाव हम पर दिखा। अब तेरे मरण का समय निकट आने वाला है। अर्जुन के कठोर वचन सुनकर क्रोधित हो अश्वत्थामा ने श्रीकृष्ण और अर्जुन पर देवताओं द्वारा अभिमंत्रित आग्नेयास्त्र छोड़ दिया। लेकिन उस आग्नेयास्त्र का श्रीकृष्ण और अर्जुन पर तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ा। अश्वत्थामा निराश होकर धनुष त्यागकर रथ से कूद पड़ा। वह रणभूमि से भागने लगा। वह कुछ दूर ही पहुंचा था कि अचानक उसे व्यास दिखाई दिये।
आंसू बहाते हुए उसने व्यास से कहा, महर्षि, मेरे अजेय और दिव्य आग्नेयास्त्र का प्रयोग विफल कैसे हो गया? इसके प्रहार से अर्जुन और श्रीकृष्ण जीवित कैसे बच गए?
व्यास जी ने अश्वत्थामा को समझाते हुए कहा, श्रीकृष्ण साक्षात नारायण हैं। वह शंकर भगवान के भक्त हैं, इसलिए कोई भी दिव्य अस्त्र उनका बाल बांका नहीं कर सकता। उन्होंने कुछ क्षण रूक कर कहा, अश्वत्थामा, यह अच्छी तरह जान लो कि श्रीकृष्ण पांडवों के पक्ष को न्यायपूर्ण और धर्ममय मानकर ही अर्जुन के सारथी बने हैं। जिसके पक्ष में धर्म है, उसे कभी कोई पराजित नहीं कर सकता है।