हंसना हमारे मनुष्य होने का सबूत है, क्योंकि मनुष्य ही ऐसा प्राणी है, जो हंस सकता है। तो क्यों न उसका पूरा-पूरा उपयोग किया जाए? भरपूर हंसी आपके चेहरे के स्नायुओं, श्वास के परदे और पेट को बेहतरीन व्यायाम देती है। उससे दिल की धड़कन और रक्तचाप क्षणिक रूप से बढ़ता है, सांस तेज और गहरी होती है और आपके खून में प्राण वायु दौड़ने लगता है। एक ठहाकेदार हंसी आपकी उतनी ही कैलोरी जला सकती है, जितना कि तेज चलना। हंसी के दौरान आपका मस्तिष्क इतने हाॅरमोन्स छोड़ता है कि आपकी सजगता शिखर पर आ जाती है। नर्मन कझिन्स एक अंग्रेजी लेखक थे, उनको जोड़ों का दर्द शुरू हुआ, जिससे वह अपाहिज हो गये। सारे इलाज करवाए, लेकिन कोई असर न हुआ। फिर उन्होंने घर आकर खुद अपना इलाज करना शुरू किया। इलाज क्या था? हास्य से भरी फिल्में देखना, मजाकिया किताबें पढ़ना और विटामिन सी के इंजेक्शन लगवाना। उनका दर्द धीरे-धीरे ठीक हो गया। इसके बाद उन्होंने एक 'ह्यूमर थेरेपी' बनाई और उसका पूरा आंदोलन चलाया। उनका कहना है कि दस मिनट की भरपेट हंसी उनके दर्द पर एनेस्थेसिया का काम करती थी और वह दो घंटे तक गहरी नींद सो सकते थे। जो लोग हमेशा गंभीर रहते हैं, उनमें एंटीबाॅडीज का स्तर बहुत कम होता है, जिससे कोई भी बीमारी उन्हें जल्दी पकड़ लेती है।
ओशो ने हास्य को असाधारण महत्व दिया है। वह कहते हैं, 'हास्य में अद्भूत क्षमता है - स्वस्थ करने की हंसें और स्वस्थ रहें और ध्यान में डुबाने की भी। मन के वे हिस्से, जो सोए पड़े थे, अनायास ही जाग उठते हैं। हंसी दिलो-दिमाग की गहराइयों में प्रवेश कर जाती है। हंसने वाले लोग आत्महत्या नहीं करते, उन्हें दिल के दौरे नहीं पड़ते, वे अनजाने ही मौन के जगत को जान लेते हैं। हंसी निर्मल कर जाती है। रूढ़ियों और अतीत के कूड़े-कचरे को झाड़कर एक नई जीवन-दृष्टि देती है, ज्यादा जीवंत, ऊर्जावान तथा सृजनशील बनाती है।