हैदराबाद गैंग रेप के चारों आरोपियों को वहां की पुलिस द्वारा एनकाउन्टर में मार देने पर जनता की जो प्रतिक्रिया मिली है, वह पुलिस वालों को सुकून देने वाली है क्योंकि इस मौके पर सारे देश में होली, दीवाली, रक्षाबंधन जैसे प्रसिद्ध त्यौहार एक साथ मनाये जा रहे हैं। दूसरी ओर उन्नाव काण्ड की पीड़िता की मौत पर जनता में दुःख से उबाल आ गया है। सरकार को जनता के मूड को समझ लेना चाहिए कि जनता हैवानों से तुरन्त मुक्ति चाहती है। अतः इस प्रकार के पाक्सो एक्ट में दुष्कर्मियों को दया याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। इस प्रकार की राय राष्ट्रपति महोदय कोविंद ने 6 दिसम्बर को एक सम्मेलन में व्यक्त की है। निर्भया की मां का कहना है कि 7 वर्ष से कोर्ट कचहरी का सामना कर रही हूं और सभी दोषी जेल में सुरक्षित जीवन यापन कर रहे हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। नब्बे फीसदी जली उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता ने मरते-मरते भी कहा है कि वह जीवित रहना चाहती है। मेरे साथ दरिंदगी करने वाला कोई बचने न पाये। दुष्कर्मियों की जमानत न हुई होती तो इस पर हमला न हुआ होता। अक्सर यह देखा गया है जब भी दुष्कर्मी की जमानत होती है तो वह सबसे पहले पीड़िता को ही निशाना बनाता है। अतः जमानत देना उचित नहीं है। दोषी जितना अधिक समय जेल में रहते हैं, धीरे-धीरे जनता का आक्रोश उनके प्रति कम हो जाता है, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों के प्रति सोनिया गांधी की नरमी इसका उदाहरण हैं। तथा कोई नया काण्ड होता है तो उसके ऊपर आक्रोश आ जाता है। निर्भया कांड से पहले कोली नामक एक नर पिशाच ने जो कांड किया था वह और भी वीभत्स था उसने कई बालिकाओं के साथ न केवल दरिंदगी की बल्कि उनका मांस भी खाया और उसको 2-3 फांसी की सजा हो भी चुकी हैं, किन्तु और भी केस अभी चल रहे हैं और अभी भी वह मस्त है। जितना बड़ा अपराधी उतना ही उसे हमारा कानून अधिक जिन्दा रहने का मौका देता है। हर अपराधी इस बात को समझता है कि देश की न्याय प्रक्रिया इतनी लम्बी है कि उसे फांसी के फंदे से बचा भी सकती है अतः वह खुलकर अपराध करना ठीक समझता है। जनता भी इस तथ्य को समझने लगी है और यही कारण है कि जिस पुलिस की जनता कभी भी प्रशंसा नही करती, उसकी प्रशंसा में फूलों की वर्षा कर रही है। जो सरकार जनता की नब्ज को नहीं पहचान सकती वह शासन करने योग्य नहीं हो सकती। इससे पहले कि पुलिस का आत्मविश्वास जनता की चाह में अपनी सीमा को पार करें, सरकार को तुरन्त ऐसे कानून लाने चाहिए कि दरिंदगी करने वाले को एक सप्ताह में मौत की सजा मिले। रेपिस्ट को जमानत न मिले तथा मौत की सजा पाये दुष्कर्मी को दया याचिका देने का अधिकार समाप्त हो।
नरमी इसका उदाहरण हैं। तथा कोई नया काण्ड होता है तो उसके ऊपर आक्रोश आ जाता है। निर्भया कांड से पहले कोली नामक एक नर पिशाच ने जो कांड किया था वह और भी वीभत्स था उसने कई बालिकाओं के साथ न केवल दरिंदगी की बल्कि उनका मांस भी खाया और उसको 2-3 फांसी की सजा हो भी चुकी हैं, किन्तु और भी केस अभी चल रहे हैं और अभी भी वह मस्त है। जितना बड़ा अपराधी उतना ही उसे हमारा कानून अधिक जिन्दा रहने का मौका देता है। हर अपराधी इस बात को समझता है कि देश की न्याय प्रक्रिया इतनी लम्बी है कि उसे फांसी के फंदे से बचा भी सकती है अतः वह खुलकर अपराध करना ठीक समझता है। जनता भी इस तथ्य को समझने लगी है और यही कारण है कि जिस पुलिस की जनता कभी भी प्रशंसा नही करती, उसकी प्रशंसा में फूलों की वर्षा कर रही है। जो सरकार जनता की नब्ज को नहीं पहचान सकती वह शासन करने योग्य नहीं हो सकती। इससे पहले कि पुलिस का आत्मविश्वास जनता की चाह में अपनी सीमा को पार करें, सरकार को तुरन्त ऐसे कानून लाने चाहिए कि दरिंदगी करने वाले को एक सप्ताह में मौत की सजा मिले। रेपिस्ट को जमानत न मिले तथा मौत की सजा पाये दुष्कर्मी को दया याचिका देने का अधिकार समाप्त हो।
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