प्रवेश द्वार चाहे किसी घर का हो, फैक्ट्री, कारखाने, गोदाम आफिस, मंदिर, अस्पताल, प्रशासनिक भवन, बैंक दुकान आदि का हो, वे लाभ-हानि दिलाने में अहम भूमिका निभाते हैं। जिसे सदियों से प्रयोग कर मानव अरमानों के महल में मंगलमय जीवन बिता चला आ रहा है। मुख्य द्वार से शत्रुओं, हिंसक पशुओं व अनिष्टकारी शक्तियों से सदैव रक्षा होती है। जिसे लगाते समय वास्तु परक बातों पर ध्यान देना आवश्यक है जैसे-प्रवेश द्वार के लिए कितना स्थान छोड़ा जाए, किस दिशा में बंद हो और किस दिशा में खुले तथा लकड़ी व लोहे किस धातु के हों, उसमें किसी प्रकार की आवाज हो या नहीं, प्रवेश द्वार पर कैसे प्रतीक चिन्ह हो, मांगलिक कार्यों के समय किस प्रकार व किससे सजाना अति उत्तम, मंगलकारी व लाभदायक रहता है जिसके द्वारा मानव सकारात्मक ऊर्जा के सहारे उन्नति करता है।
वास्तु निर्देश-
-किसी भी भूखण्ड व भवन का प्रवेश द्वार उसकी आकृति मार्ग (रास्ते) पर आधारित होती है। इसका निर्माण जल्दबाजी या बिना सोच-विचार के नहीं करना चाहिए। -किसी मकान का एक प्रवेश द्वार शुभ माना जाता है। अगर दो प्रवेश द्वार हों तो उत्तर दिशा वाले द्वार का प्रयोग करें तथा उत्तर पूर्व वाले को बंद करके रखें। -पूर्वाभिमुख भवन का प्रवेश द्वार पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। प्रवेश अगर पूर्व में हो तो सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती तथा दीर्घ आयु व पुत्र धन की प्राप्ति होती है।
-पश्चिम मुखी मकान का प्रवेश द्वार पश्चिम व उत्तर-पश्चिम में किया जा सकता है, परन्तु दक्षिण-पश्चिम में बिल्कुल नहीं होना चाहिए। भूखण्ड कोई भी मुखी हो अगर मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की तरफ या उत्तर-पूर्व की तरफ या उत्तर की तरफ हो तो उत्तम फलों में वृद्धि होती है।
-उत्तराभिमुख भवन का प्रवेश उत्तर या उत्तर-पूर्व में होना चाहिए। ऐसे प्रवेश द्वार से निरन्तर धन लाभ व्यापार और सम्मान में वृद्धि होती है।
-दक्षिणाभिमुख भूखण्ड का द्वार दक्षिण या दक्षिण-पूर्व में कदाचित नहीं बनाना चाहिए, पश्चिम या अन्य किसी दिशा में मुख्य द्वार लाभकारी हो सकता है। -उत्तर-पश्चिम का मुख्य द्वार लाभकारी है और व्यक्ति को सहनशील बनाता है।
-मेन गेट को ठीक मध्य (बीच) में नहीं लगाना चाहिए। जिस दिशा में प्रवेश द्वार लगा रहें हो उसकी लंबाई की नौ बराबर भागों में बांट कर लगाएं।
-प्रवेश द्वार को घर के अन्य दरवाजों की अपेक्षा बड़ा होना चाहिए।
-प्रवेश द्वार ठोस लकड़ी या धातु से बनें होना चाहिए उनके ऊपर त्रिशूल नुमा छड़ी नहीं लगी होनी चाहिए।
-घर का विस्तार करते समय मुख्य द्वार को इधर-उधर नहीं खिसकाना चाहिए। इसे घर के दरवाजों के ठीक सामने खुलना अच्छा नहीं माना गया।
-प्रमुख द्वार पर किसी तरह की परछाई व अवरोध अशुभ माने गए हैं।
-दरवाजा खोलते व बंद करते समय किसी प्रकार की आवाज होना अच्छा नहीं माना जाता।
-पूर्वी व उत्तरी दिशाओं में अधिक स्थान छोडना शुभ होता है।
-प्रवेश द्वार किसी मंदिर, गुरुद्वारा वेधशाला के सामने नहीं होना चाहिए।
-प्रमुख प्रवेश द्वार पर गणेश व गज लक्ष्मी कुबेर के चित्र लगाने से सौभाग्य व सुख में निरन्तर वृद्धि होती रहती है।
-मांगलिक कार्यों व शुभ अवसरों में प्रवेश द्वार को आम के पत्ते व हल्दी तथा चंदन जैसे शुभ व कल्याणकारी वनस्पतियों से सजाना शुभ होता है।
-इसे सदैव साफ व स्वच्छ रखना चाहिए किसी प्रकार का कूड़ा या बेकार समान प्रवेश द्वार के सामने कभी न रखें। प्रातः व सायं के समय में कुछ समय के लिए खुला रखना चाहिए।
-सूर्यास्त व उदय के होने सेे पहले इसकी साफ-सफाई हो जानी चाहिए। सायंकाल होते ही यहां पर उचित रोशनी का प्रबंध होना चाहिए।
जिस घर में उपरोक्त नियमों का सावधानीपूर्ण पालन किया। जाता है वहां सदैव लक्ष्मी, धन, यश स्वास्थ्य लाभ व निरोगताप्राप्त होती है। क्या आप इन्हें नहीं चाहेंगे?
वास्तुविद-संजय कुमार गर्ग