श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी वैदिक विद्वान होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार भी थे, उन्होंने अपनी तूलिका से बडे-बडे धनपतियों एवं अन्य लोगों के चित्र बनाए थे, उसी के माध्यम से वह अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। उन दिनों भारत गुलाम राष्ट्र था। एक दिन सातवलेकर जी के मन में विचार आया कि भारतमाता को स्वतंत्र कराने के लिए वेद-ज्ञान के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने में योगदान करना चाहिए। उसी दिन से उन्होंने चित्र बनाने बंद कर दिए।वह लोगों को एकत्र करके उन्हें वेद-ज्ञान के साथसाथ देश को आजाद कराने के लिए एकता का पाठ पढ़ाने लगे, लेकिन इससे उनके परिवार के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया।
एक दिन एक व्यक्ति उनके परिवार पर आर्थिक संकट की बात सुनकर उनके पास आया और उनके सामने बहुत सारे रुपये रखकर बोला, पंडित जी आप हमारे नगर के राय बहादुर जी का चित्र बना दीजिए और ये कुछ रुपये रखिए, चित्र पूरा होने पर आपको और अधिक रुपये दिए जाएंगे, जिससे आपका आर्थिक संकट दूर हो जाएगा। उस व्यक्ति की बात सुनकर सातवलेकर जी बोले-"अँगरेजों से रायबहादुर की उपाधि प्राप्त किसी अँगरेजपरस्त व्यक्ति का चित्र बनाकर उससे मिले अपवित्र धन को मैं स्पर्श भी नहीं करूँगा, आप इन रुपयों को उठाइए और यहाँ से चले जाइए।" वह व्यक्ति आर्थिक संकट में भी सातवलेकर जी की देशभक्ति की भावना देखकर श्रद्धावनत हो गया।