बादशाह अकबर एक बार महाकवि सूरदास के दर्शन के लिए पहुंचे। सूरदास की रचना सूरसागर तब तक बेहद प्रसिद्ध हो चुकी थी। काव्य रसिक उनकी तुलना गोस्वामी तुलसीदास से करने लगे थे। अकबर ने भी इस बारे में सुन रखा था। उन्होंने सूरदास जी से कुछ भक्ति गीत सुने, तो भाव विभोर हो उठे। उन्हें समझ में आ गया कि सूरदास को बाल कृष्ण की लीलाओं का सर्वश्रेष्ठ चितेरा आखिर ऐसे ही नहीं कहा जाता। बाल मनोविज्ञान की ऐसी गहराई और अलंकारों के अद्भुत प्रयोग सुनकर अकबर मुग्ध हो गये। काफी देर तक उनके गीत सुनने के बाद उन्होंने महाकवि से पूछा, मेरी एक जिज्ञासा का समाधान करें। वर्तमान समय में सर्वोत्तम कविता किसकी है? सूरदास ने बिना एक क्षण रूककर कहा, इसमें भला संदेह की गुंजाइश कहां हैं! इस समय सर्वोत्तम कवि तो मैं ही हूं। अकबर को यह सुनकर थोड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने दोबारा पूछा, गोस्वामी तुलसीदास जी की कविताओं के बारे में आपका क्या मत है? इस बार सूरदास ने सम्मान के साथ कहा, गोस्वामी जी की कविता तो कविता है ही नहीं। उनकी लेखनी से उकेरी गई एक एक चैपाई साक्षात महामंत्र है। महामंत्र को साधारण कविता मानने को मैं अज्ञानता ही समझूंगा। उनकी लेखनी पर टिप्पणी करने का मैं अधिकारी भी नहीं हूँ। बादशाह अकबर सूरदास की निरभिमानता देखकर हतप्रभ रह गये। वह समझ गये कि इतनी प्रशंसा और प्रसिद्धि के बावजूद सूरदास में खुद सो सबसे बड़ा समझने का अहंकार नहीं है।