आकाशीय पिंड की कई संरचनाएं हमें आचर्यचकित करती हैं। इन्हीं में से एक है चांद का संग-संग चलना। हमें लगता है कि हम जहां जाते है चांद भी हमारे साथ-साथ चलता है। चाहें हम कितनी ही दूरी चल लें, चांद हमारे सापेक्ष हमे उतनी ही दूरी पर दिखता है। यह समझने के लिए कि दो ग्रहों पर दो ऑबजेक्ट के बीच सापेक्ष दूरी किस तरह से बनती है। मान लीजिए कि सितारों की दूरी पृथ्वी पर हमारी जगह से 10 की घात अट्ठारह यानी कि एक के बाद अठारह शून्य) मीटर है।
यहां तक कि यदि पृथ्वी पर दस किलोमीटर की दूरी तय करें तो उस तारे से हमारे कोण में जरा सा फर्क आएगा। यह इतना कम होगा कि इसे महसूस नहीं किया जा सकता। यही बात चंद्रमा के साथ भी लागू होती है, जो हमसे सितारों की इस गणनात्मक दूरी से चार गुना और ज्यादा दूर हैं। और, हम चाहे दस किलोमीटर की दूरी तय कर लें चांद हमें उसी कोण पर दिखेगा। दूसरी ओर बादल हमसे कुछ ही किलोमीटर दूर होते हैं और सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी तय करने पर इनकी स्थिति बदल जाती है। कारण यह है कि दूरी कम होने के कारण कोणीय विचलन बढ़ जाता है। इसलिए जब हम चलते हैं तो बादल आगे या पीछे होते रहते हैं। जब हम चांद की ओर देखते हैं तो उसकी पृष्ठभूमि में सितारे और आगे की ओर बादल दिखाई देते हैं। यदि हम अपनी दूरी बादलों के सापेक्ष सोच कर चलें तो लगेगा कि हम आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन, चांद की मौजूदगी में ऐसा नहीं होता क्योंकि हम महसूस करते हैं कि चांद हमारे संग चल रहा है।