बुढ़ापे और बीमारियों की दुश्मन है "गाजर"


लम्बे समय से कई लोगों ने वज़न घटाने के दौरान गाजर खाने पर संशय उठाए हैं। यदि हम इसके लाभ और इसकी पौष्टिकता को देखें तो यह डर निर्मूल लगता है। यद्यपि गाजर में ब्लड शुगर लेवल (ग्लाईसेमिक इंडेक्स) को बढ़ाने की क्षमता (92) है फिर भी यह कैलॉरी में कम और न्यूट्रिशन के मामले में बेस्ट है। पारंपरिक विचारक मानते हैं कि गाजर प्रतिपूरक और उपचारक सब्जी है। यूनान में ढाई हजार वर्ष पहले मिले लेखों में जिक्र है कि रोगों के निदान में इसका प्रयोग किया जाता था। टीबी, अस्थमा, निमोनिया, शरीर में जल की कमी, गठिया, आंत्रशोथ शिकायतों जैसे कोलिक और अलसर में इसका प्रयोग किया जाता रहा है। शोधों में पाया गया कि मैक्यूलर डिजेनरेशन (दृष्टि खो जाने से जुड़ी रेटिना की बीमारी), अथेरोसेलोरोसिस (आट्रीज सख्त हो जाना) तथा कार्डियो-वेस्कुलर रोग की रोकथाम में यह कारगर है। हाई सोल्यूबल फाइबर के कारण इसके सेवन से कोलेस्ट्रोल घटाने में बहुत मदद मिलती है।


गाजर का सर्वश्रेष्ठ न्यूट्रिशन फ़ायदा है उसका उत्कृष्ट बीटा-केरोटीन (प्रो-विटामिन) तत्व। बीटा-केरोटीन विटामिन-ए का प्लांट फॉर्म है तथा शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है। शरीर बीटाकेरोटीन को विटामिन-ए में बदल देता है जो म्यूक्स मेम्ब्रेन्स की देखभाल के साथ-साथ स्वस्थ नज़र के लिए अपेक्षित है। इसमें हैं एंटी कैंसर तत्व जो कई जटिल रोगों की रोकथाम में सहायक मान गए हैं। यह बुढापे का आना धीमा कर देती है आर लंबी आयु पाने में सहायक है। बीटाकेरोटीन फ्री रेडिकल्स द्वारा होने वाली क्षति को भी रोकता है। रक्त में बीटा-केरोटीन का निम्र स्तर कमजोर नजर रात्रि अन्धता, इन्फेक्शन, कईतरह के कैंसर विशेष रूप से लंग कैंसर का जोखिम बढ़ा देता है।


गाजर में विटामिन बी-3, सी एवं ई पर्याप्त मात्रा में होता है। इसे कच्चा खाएं तो पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन और जिंक मिलते हैं। परंतु पकाने पर ये आंशिक रूप से नष्ट हो जाते हैं। इसकी लाल वैरायटी में पीली-संतरी वैरायटी से 10-15 गुना ज्यान केरोटीन मिलता है। 50 ग्राम गाजर खाने से बीटा-केरोटीन की दैनिक आवश्यकता मिल जाती है। जो लोग ज्यादा मात्रा में गाजार खाते हैं उनमें केरोटेनीमिया हो जाता है। जिसमें हथेलियों और त्वचा पर पीले धब्बे पड़ जाते हैं। इसे पीलिया से अलग माना गया है चूंकि इसमें आंखों का सफेद भाग पीला नहीं पड़ता।


अन्य सब्जियों की तुलना में गाजर तभी ज्यादा पौष्टिकता दे सकती है जब उसे कच्चे की जगह पका कर खाया जाए। चूंकि कच्ची गाजर में मजबूत सेल्यूलर वॉल्स होती हैं और शरीर उसका 25 फीसदी से कम बीटा-करोटीन विटामिन-ए में बदलने में कामयाब होता है। बहरहाल पकाने से सैल मेम्ब्रेन्स टूट जाते हैं। भोजन में कुछ फैट जरूरी होता है जो बीटा-केरोटीन को बेहतर तरीके से सोख ले चूंकि यह एक फैट-सोल्यूबल विटामिन है।


जिन बच्चों को डायरिया की शिकायत हो उनके लिए पिसी हुई प्यूरी के रूप में गाजर फायदेमंद होती है चूंकि इसमें जरूरी पौष्टिकता और प्राकृतिक शुगर मिलती है। गाजर टॉक्सिक केमिकल्स के लिए जानी जाती है तथा परीक्षणों में कुछ गाजरों में आर्गनोफासफोरस पेस्टीसाइड का अस्वीकार्य उच्च स्तर पाया गया है। गाजर छीलकर और ऊपरी हिस्सा काट देने से इसके दुष्प्रभाव खत्म हो जाते हैं। लेकिन बेहतर है प्राकृतिक तरीके से उगी गाजर खाएं। इसके महत्वपूर्ण न्यूट्रिएंट्स या तो गाजर की स्किन में या उसके बिल्कुल नीचे पाए जाते हैं। इन्हें बचाने के लिए गाजर को हल्का ही छीलें।