बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना (मिर्जा ग़ालिब)

 



बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्साँ होना


गिरिया चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबाँ होना


वा-ए-दीवान्गी-ए-शौक़ के हर दम मुझ को
आप जाना उधर और आप ही हैराँ होना


जल्वा अज़बस के तक़ाज़-ए-निगह करता है
जौहर-ए-आईन भी चाहे है मिज़ग़ाँ होना


इश्रत-ए-क़त्लगह-ए-अहल-ए-तमन्ना मत पूछ
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियाँ होना


ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात
तू हो और आप बसदरन्ग-ए-गुलिस्ता. ण होना


इश्रत-ए-पारा-ए-दिल, ज़ख़्म-ए-तमन्नाख़ाना
लज़्ज़त-ए-रीश-ए-जिगर ग़र्क़-ए-नमक्दाँ होना


की मेरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा
हाये उस ज़ोदपशेमाँ का पशेमाँ होना


हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़लिब'
जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गरेबाँ होना