मृत्यु और निर्माण के बीच में हम ठहरे हुए हैं. वर्तमान बड़ी तेजी से भूत की ओर दोड़ता है। भूत और मृत्यु एक ही बात है. कहते हैं कि मरने के बाद मनुष्य भूत बनता है, मनुष्य ही नहीं हर चीज मरती है और वह भूत बन जाती है। जब किसी वस्तु की सत्ता पूर्णता समाप्त हो जाती है तो उसकी पूर्ण मृत्यु कही जाती है । पर आंशिक मृत्यु जन्म के साथ ही आरंभ हो जाती है / बालक जन्म के बाद बढ़ता है, विकास करता है, उसकी यह यात्रा मृत्यु की ओर भी है/
संसार की हर वस्तु का, मनुष्य शरीर का भी निर्माण उन्हीं तत्वों से हुआ है जो हर क्षण बदलते हैं। उनका चक्र भूत को पीछे छोड़ते हए और भविष्य को पकड़ता हुआ प्रतिक्षण बड़ी तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। विश्व एक पल के लिए भी स्थिर नहीं रहता / अणु-परमाणुओं से लेकर विशालकाय ग्रह पिण्ड तक अपनी यात्रा अविश्रान्त गति से कर र हे हैं । हमारा जीवन भी हर घड़ी-थोड़ा-थोड़ा करके मर रहा है, इस दीपक का तेल शनैः-शनैः चुकता चल जा रहा है । भविष्य की ओर हम चल रहे हैं और वर्तमान को भूत की गोदी में पटकते जाते हैं, यह सब देखते हुए भी हम नहीं सोचते कि क्या वर्तमान का कोई सदुपयोग हो सकता है? जो बात गयी सो गयी, जो आने वाला है वह भविष्य के गर्भ में है। वर्तमान हमारे हाथ में है । यदि हम चाहें तो उसका सदपयोग करके इस नश्वर जीवन में से कुछ अनश्वर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
-अखण्ड ज्योति से साभार