अनुलोम-विलोम एक चमत्कारी प्राणायाम !


अनुलोम-विलोम मन को शांत करने वाला नाड़ी शोधन प्राणायाम हैं। इस प्राणायाम से हाथ की पकड़ मजबूत होती हैं। इसलिए यह कंप्यूटर पर लगातार बैठने वाले और अर्थराइटिस की प्रारंभिक अवस्था वाले व्यक्तियों के लिए विशेष उपयोगी है। इस प्राणायाम को लेटकर, बैठकर खड़े-खडे़ और यहां तक कि चलते-फिरते भी किया जा सकता है। यह प्राणायाम आपके मन को तनाव मुक्त करता है। इसलिए तनाव के क्षणों में अत्यंत लाभकारी है। इस प्राणायाम को करने के बाद आप दिनभर स्वयं ऊर्जावान महसूस कर सकते है।


यह है विधि :


शरीर को सहज रखते हुए बैठें। बाएं हाथ को ज्ञान मुद्रा की स्थिति में रखें और शेष तीनों उंगलियों एकदम सीधी हों, रीढ़ और गर्दन सीधी रखें। आंखें बंद रखें।
दाएं हाथ की तर्जनी और मध्यम को दोनों भौहों के बीच टिका लें। दाएं हाथ के अंगूठे से नाक के दाहिने नथुने (नास्ट्रिल) को बंद कर बायीं नासिका से सांस छोडें और गहरी सांस लें। फिर बायीं नासिका को दाएं हाथ की अनामिका अंगुली से बंद कर दायीं नासिका से धीरे-धीरे सांस बाहर निकल जाने दें। पूरी प्रक्रिया के दौरान ध्यान सांस पर ही केंद्रित रखें। अंत में दोनों हथेलियों को रगड़कर आंखों पर लगाएं।

कितनी देर तक :


दोनों नासिका छिद्रों से यह प्रक्रिया लगभग 20 मिनट तक करें। 21 से 30 राउंड तक लगातार करने पर ही लाभ होता है। कैंसर, इम्यून सिस्टम से संबंधित समस्याओं, सोरायसिस, ब्रॅन्काइटिस, पल्मोनरी फाइगब्रोसिस जैसे रोगों में इसे आधे घंटे तक किया जा सकता है। इस संदर्भ में योग विशेषज्ञ से परामर्श लेना बेहतर रहेगा।


लाभों को जानें :


पूरे शरीर में रक्त का समुचित रूप से संचार होता है। शरीर को अधिक आॅक्सीजन मिलने से व्यक्ति ऊर्जावान महसूस करता है।


-डिप्रेशन, माइग्रेन, नर्वस सिस्टम, ब्रेन, आंखों की रोशनी, हृदय, हाइपरटेंशन, स्ट्रेस, पार्किन्संस डिजीज और लकवा में लाभप्रद है।
-शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
-याददाश्त और एकाग्रता काफी बढ़ जाती है।
-अनियंत्रित ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद मिजती है।
-शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक-तीनों प्रकार का संतुलन बनता है।
-त्रिदोषों-कफ, पित्त और वात का शमन होता है।
-मन को शांति मिलती है।


समझें सावधानियां :


खाली पेट यह प्राणायाम करना सर्वोत्तम है।
सांस जोर-जोर से न लें।
सांस की गति इतनी सहज हो कि आपको स्वयं भी अपनी सांस की आवाज सुनाई न दे।
सांस पेट में नहीं, केवल फेफड़े में (डायफ्राम तक) भरें। अभ्यास के दौरान मुंह बंद रखें।