महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के काटलुक गांव में एक प्राइमरी स्कूल था। पहला दिन था, इसलिए कक्षा में ज्यादातार विद्यार्थी नए थे।
अध्यापक जाधवराव ने प्रवेश करते ही बच्चों से पूछा, यदि तुम्हें रास्ते में हीरा मिल जाए, तो तुम उसका क्या करोगे? सभी विद्यार्थियों को अपने मन से जवाब देना था। अध्यापक ने कह दिया था कि जरूरी नहीं कि जवाब सही हो, सिर्फ यह जरूरी है कि सभी को अपनी पसन्द का जवाब देना है। एक छात्र ने कहा कि वह हीरा बेचकर देश-विदेश की यात्राएं करेगा। किसी ने कारखाना मालामाल हो जाने और सदावर्त चलाने की बात कही। यानी सभी छात्र अपने-अपने ढंग से सवाल के जवाब दे रहे थे।
छात्रों की बातें सुनने के लिए जाधवराव किसी यंत्र चालित मूर्ति की तरह गर्दन उचकाते और अगले छात्र पर नजरें टिका देते। उनकी प्रतिक्रिया से लगता कि उन्हें रटे-रटाए उत्तर मिल रहे हैं। मगर अचानक एक छात्र के उत्तर पर जाधवराव ठहर गये।
उस बालक का उत्तर था, मैं उस हीरे के मलिक का पता लगाऊंगा और उसे हीरा लौटा दूंगा।
अध्यापक चकित थे। फिर उन्होंने पूछा कि बहुत कोशिश करने पर भी अगर मालिक न मिला, तो क्या करोगे?
उस छात्र ने कहा, तब मैं हीरे को बेचूंगा और उससे मिले पैसे अनाथ-लावारिस बच्चों की सेवा में लगा दूंगा। वह लावरिस हीरा लावरिसों की मद्द के लिए ही काम आना चाहिए।
शिक्षक उत्तर सुनकर गद्गद हो गये। खुशी से वह बोले, शाबास, तुम बड़े होकर सचमुच देशभक्त बनोगे। उनका कहा हुआ सही निकला। बड़ा होने पर वह बालक गोपाल कृष्ण गोखले के नाम से जाने गये।