वर्तमान विश्व-व्यवस्था में अकेलापन हर मनुष्य की नियति है। कारणों की तलाश में निकलेंगे, तो जो बात हम कहना चाहते हैं, वह अनकही रह जाएगी। अतः कारणों की तलाश आप करते रहें, फिलहाल सिर्फ अपने अकेलेपन को महसूस करें और इस सच को स्वीकार करें कि अपनी जिंदगी को तमाम तरह के लोगों से और उनसे भी ज्यादा तमाम तरह की चीजों से भर लेने के बावजूद आप अकेले हैं। विश्वास नहीं होता, तो सोचें कि जब आप अपनी बेहद निजी तकलीफ किसी ऐसे आत्मीय मित्र से साझा करना चाहते हैं, जिसके कंधे पर सिर रखकर आप रो सकें, तब क्या होता है? आपको यह डर लगा रहता है कि वह कहीं विश्वासघात कर आपके रोने को सार्वजनिक करके आपको शर्मिंदा न कर दे। तब आपको सोचना पड़ता है कि ऐसा भरोसेमंद मित्र कौन हो सकता है और आप पाते हैं कि दूर-दूर तक ऐसा मित्र कोई नहीं है। यही है अकेलापन।
वर्तमान विश्व व्यवस्था द्वारा बनाई गई हर मनुष्य की नियति। दिक्कत यह है कि आपने इसे बपनी अटल नियति मान ली है, जबकि यह बदली जा सकती है, आप स्वयं इसे बदल सकते हैं। शुरूआत के लिए आप स्वयं ऐसा भरोसेमंद मित्र बनने की कोशिश करें, जिसके कंधे पर सिर रखकर आपका कोई अकेला मित्र निश्चित होकर रो सके।