सूडोकू कैसे बनी पहेली!


सू का मतलब है अंक और डोकू का मतलब अकेला। हर रोज अखबारों में सूडोकू की अंक पहेलियां आती हैं, जिसे तुम सॉल्व करने के लिए अपना दिमाग दौड़ाते हो, हम उसी की बात कर रहे हैं। तुम्हारे ही तरह करोड़ों पाठक भी हर सुबह अखबार खोलते ही खाली खानों को भरने में जुट जाते हैं। अंकों का यह खेल किसी गणितीय सिद्धांत पर आधारित नहीं है। इसके लिए चाहिए सिर्फ बुद्धि जो आजकल के बच्चों में कमाल की है। कभी सन् 1979 में ब्रिटेन की प्रसिद्ध 'डेल' पत्रिका के लिए गार्नेस नामक एक व्यक्ति ने इसकी शुरूआत की थी। तब इस खेल को अधिक लोकप्रियता नहीं मिली थी व डेल को इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा था। तब जापान की एक कम्पनी निकोली पजल्स ने इसकी ओर ध्यान दिया और सूडोकू को नया जीवन मिल गया। इस कम्पनी ने इस बेनाम खेल को नाम दिया 'सूची वा दो कुश्नि नि कागिस' यानी हर अंक अकेला। बाद में यही नाम संक्षिप्त होकर सूडोकू रह गया।
सन् 2004 मे ंयह खेल जापान से निकलकर ब्रिटेन पहुंचा और कुछ दिनों में वहां छा गया। दी टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित अखबार ने हर दिन इसे छापना शुरू कर दिया। सूडोकू की सफलता ने 1980 के दशक के 'रयूबिक क्यूब्स' (छः रंगों वाले छोटे-छोटे क्यूब्स को व्यवस्थित करने का खेल) को मिली सफलता को भी पीछे छोड़ दिया। आइए जानते हैं कि सूडोकू खेला कैसे जाता है? इसमें एक वर्गाकार खाने को 9 छोटे-छोटे वर्गाकार खानों में बांट दिया जाता है और फिर इन सभी वर्गो को 9-9 छोटे खानों में बांटते हैं। प्राप्त 81 खानों में से कुछ में 1 से 9 तक के अंक भरे जाते हैं और बाकि खानों को पाठकों के लिए छोड़ दिया जाता है। पाठकों को रिक्त खाने में ऐसे अंक भरने होते हें कि एक सीध में पड़ने वाले सभी खानों में 1 से 9 तक अंक बिना दुहराव के आए और सभी मझोले वर्गो के खानों में भी यही करना होता है। सूडोकू में किसी भाषा का भी बंधन नहीं है। तभी तो यह बच्चों व बड़ों सभी के बीच दिमागी कसरत वाले खेल के रूप में लोकप्रिय हो चुका है। इसकी सफलता का आलम यह है कि इस पर कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं व अब इंटरनेट पर भी यह खेल उपलब्ध है।