गुरू आखिर गुरू ही होता है! (हास्य कथा)


कॉलेज के चार विद्यार्थी एक रात देर तक मस्ती करते रहे और जब होश आया तो अगली सुबह होने वाली परीक्षा का भूत उनके सामने आकर खड़ा हो गया। 
परीक्षा से बचने के लिए उन्होंने एक योजना बनायी। मैकेनिकों जैसे गंदे और फटे पुराने कपड़े पहनकर वे प्रिंसिपल के सामने  जा खड़े हुए और उन्हें अपनी दुर्दशा की जानकारी दी। उन्होंने प्रिसिपल को बताया कि कल रात वे चारों एक दोस्त की शादी में गए थे। लौटते में गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया। किसी तरह धक्का लगा-लगाकर गाड़ी को यहां तक  लाए हैं। इतनी थकान है कि बैठना भी संभव नहीं दिखता, पेपर हल करना तो दूर की बात है। यदि प्रिंसिपल साहब उन चारों की परीक्षा आज के बजाय किसी और दिन ले लें, तो बड़ी मेहरबानी होगी। प्रिंसिपल साहब बड़ी आसानी से मान गये। उन्होंने तीन दिन बाद का समय दिया। विद्यार्थियों ने प्रिंसिपल साहब  को धन्यवाद दिया और जाकर परीक्षा की तैयारी में लग गए। तीन दिन बाद जब वे परीक्षा देने पहुंचे तो प्रिंसिपल ने बताया कि यह विशेष परीक्षा केवल उन चारों के लिए ही आयोजित की गयी है। चारों को अलग-अलग कमरों में बैठना होगा। चारों विद्यार्थी अपने-अपने नियत कमरों में जाकर बैठ गये। जो प्रश्नपत्र उन्हें दिया गया उसमें केवल एक ही प्रश्न था-


गाड़ी को कौन सा टायर पंक्चर हुआ? (100 अंक)


अ-अगला बायां
ब-अगला दायां
स-पिछला बायां
द-पिछला दायां


प्रश्न देखकर चारों के सिर चकरा गए। आखिर तब उन्हें समझ आया आखिर गुरू, गुरू की होता है।
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संकलन-संजय कुमार गर्ग