दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है
आख़रि इस दर्द कि दवा क्या है।
हम हैं मुश्ताक और वो बेज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है।
मैं भी मुँह मे ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दा क्या है।
जब कि तुझ बिन नही कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ए खुदा क्या है।
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है।
मैंने माना कि कुछ नहीं ग़ालिब
मुफ़्त हाथ आये तो बुरा क्या है ।